(बिहार बाढ़-सूखा-अकाल)
अदिति-पटना के श्री गणेश प्रसाद (अब स्वर्गीय) से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश। गणेश जी ने जय प्रकाश नारायण के सहयोगी के रूप में बिहार रिलीफ सोसायटी के माध्यम से 1966-67 के अकाल में महत्वपूर्ण काम किया था। उन्होंने मुझे बताया कि,
मेरी शुरुआत एक शिक्षक के तौर पर हुई थी। बाद में मैंने इसे बदलना चाहा और काफी खोज-बीन के बाद सर्वोदय के प्रति आकर्षित हुआ। मेरे पिताजी के एक मित्र ने रामेश्वर प्रसाद शाही से करवाया और ग्रामदान जैसे कार्यक्रमों से मेरा जुड़ाव हुआ। फिर मेरा सम्पर्क बैजनाथ चौधरी से हुआ जिन्होंने बिहार ग्राम निर्माण समिति नाम की एक संस्था बनायी हुई थी जिसके अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण थे। मैं बिहार ग्राम निर्माण समिति में आ गया। मुजफ्फरपुर में पांच ग्राम दानी गांव थे जिसमें विकास कार्यों के लिए इंग्लैंड की एक संस्था क्वैकर्स सोसाइटी ने 25 हजार रुपये दिये थे। उन दिनों समाज सेवा के काम में मुख्यतः खादी संस्थाएं ही काम करती थीं। यहां काम करते हुए मैं जेपी (जय प्रकाश नारायण) के सम्पर्क में आया। वहां का काम रचनात्मक था और एक साल बाद जब पूरे काम का मूल्यांकन हुआ तब जेपी मुझसे काफी प्रभावित दिखे।
1966 के सूखा/अकाल में जब बिहार रिलीफ कमेटी बनी तब उसमें दो सेक्रेटरी जेपी द्वारा बनाये गये। मुझे उसमें ऑफिस सेक्रेटरी बनाया गया। राजस्थान के सिद्धराज ढड्ढा जी आये थे जो जनरल सेक्रेटरी बनाये गये। गुजरात से रविशंकर महाराज आये। समिति के पास बस काम चलाऊ पैसा ही था। बाद में धीरे-धीरे पचास-साठ हजार रुपये चन्दे के माध्यम से इकट्ठा हुआ।
जब सूखे की स्थिति साफ होने लगी तो एक कार्यसमिति बैठक हुई जिसमें सभी राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्ष थे। पांच लोग उपाध्यक्ष नामित हुए जिसमें एक कृष्ण बल्लभ सहाय भी थे और कुल मिला कर 31 सदस्यीय कमेटी गठित हुई। इसमें गैर राजनीतिक लोग भी सदस्य थे। पहले यह तय हुआ कि राहत कार्यों को अपने स्तर से शुरू करना होगा और इसके लिए साढ़े तीन लाख का बजट बना। मुझे आश्चर्य हुआ कि कुल पूंजी पचास हजार के आसपास की है। यह बाकी तीन लाख रुपया कहां से आयेगा? इत्तेफाक देखिये कि अगले दिन पोप ने चार लाख रुपये देने की घोषणा की। उसके अगले दिन टाटा ने दो लाख रुपये दिये। इस तरह से रोज कुछ न कुछ आना शुरू हो गया। तब गया जिले से राहत कार्य शुरू किया गया।
रविशंकर महाराज किचेन सम्हालते थे और उनकी रसोई में स्वतंत्र रूप से काम कर रही थी। उनको कार्यकर्ता हम लोगों ने दिये थे। हम लोगों का काम एक दिसम्बर से शुरू हो गया था।
फिर पैसा भी आना शुरू हो गया। 300 से 500 तक मनी आर्डर रोज आते थे। चेक-ड्राफ्ट अलग से। दूसरे प्रांतों में रिलीफ कमिटी का गठन हुआ तो वह लोग भी पैसा भेजते थे। विदेशों से भी पैसा और सामान आने लगा और यूनिसेफ ने भी मोर्चा सम्हाला। बहुत से रिटायर्ड सरकारी अफसर इस काम में वॉलिंटियर की हैसियत से जुड़े और तरह-तरह की जिम्मेदारियां सम्हालीं। बाद में कमेटी ने सस्ती रोटी की बहुत सी दुकानें खोलीं। सरकार ने माल ढुलाई के भाड़े से कमेटी को मुक्त कर दिया जिससे और भी सहूलियत बढ़ गयी थी।
देश के कोने-कोने से लोग हाथ बंटाने के लिये आये और बहुत दिल से काम किया। इसके साथ ही भविष्य में इस तरह के हालात न पैदा हो उसके योजना कमेटी ने बनायी और माइनर इरिगेशन पर जोर देने का प्रस्ताव आया। इस विषय पर भी कमेटी ने काम शुरू किया। हम इतना तो जरूर कर सकते हैं कि बिहार में आजादी के बाद इस इलाके में जितना काम हुआ उससे कहीं ज्यादा काम इन 2 वर्षों में बिहार रिलीफ कमिटी ने किया। जमुई जैसी जगह में जहां सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, वहां उसका इंतजाम हुआ। यह कार्यक्रम 1967 की बरसात के मौसम में समाप्त हुआ।
कार्यक्रम समाप्त होने के बाद जेपी ने जरूर कहा था कि हम लोगों ने रिलीफ का काम पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया फिर भी जो पांच से दस प्रतिशत गड़बड़ी हुई होगी उस से उन्होंने इनकार नहीं किया। कभी माल कम मिला होगा, किसी ने सस्ती रोटी दुकान बाहर बेच दी होगी लेकिन यह भी हुआ कि भोजन की लाइन में हाजिरी से ज्यादा लोग पाये गये। नगद और सामान मिला कर 4 से 5 करोड़ रुपया जरूर खर्च हुआ होगा।
स्वर्गीय श्री गणेश प्रसाद