बाबा भीमराव आंबेडकर जी की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए किया गया एक प्रभावी सत्याग्रह था। इस दिन को भारत में सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस सत्याग्रह में हजारों की संख्या में दलित लोग एवं सवर्ण लोग भी सम्मिलित हुए थे, सभी लोग महाड के चवदार तालाब पहुँचे और आंबेडकर ने प्रथम अपने दोनों हाथों से उस तालाब में पानी पिया, फिर हजारों सत्याग्रहियों ने उनका अनुकरण किया। यह आंबेडकर जी का पहला सत्याग्रह था।
उस दौर में दलितों को समाज से पृथक करके देखा जाता था। उन लोगों को सार्वजनिक नदी, तालाब और सड़कें इस्तेमाल करने की मनाही थी। अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव कौंसिल के द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया, कि वे सभी जगह जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, ऐसी जगहों का इस्तमाल हर कोई कर सकता है।
जनवरी 1924 में, महाड जोकि बॉम्बे कार्यक्षेत्र का हिस्सा था। उस अधिनियम को नगर निगम परिषद के द्वारा लागू किया गया, लेकिन विरोध के कारण इसे अमल में नहीं लाया जा सका। 1927 में अंबेडकर ने सार्वजनिक स्थानों पर पानी का इस्तेमाल करने के अपने अधिकारों पर जोर देने के लिए सत्याग्रह शुरू करने का फैसला किया। कोंकण के एक शहर महाड को इस आयोजन के लिए चुना गया था।
श्री ए0वी0 चित्रे, समाज सेवा लीग के चितपावन ब्राह्मण जी0एन0 सहस्रबुद्धे और मद्ठ नगर पालिका के अध्यक्ष रहे सुरेंद्रनाथ टिपनिस ने मिलकर महाड नगर पालिका के सार्वजनिक स्थलों को अछूतों के लिए खुला घोषित किया और अंबेडकर को १९२७ में मड़ई में एक बैठक आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया। बैठक के बाद वे 'चवदार टैंक' के लिए रवाना हो गए। अंबेडकर जी ने टैंक से पानी पिया और हजारों लोगों ने उनका अनसरण किया। अंबेडकर जी ने सत्याग्रह के दौरान दलित महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि उन सभी पुराने रीति-रिवाजों को छोड़ दीजिये जो छुआछूत को बढ़ावा देते हैं।
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