सुखाड़ और सत्यनारायण व्रत कथा
1956 में बिहार में कुछ इलाकों में सूखे के हालात बन गये थे लेकिन यह सर्वव्याप्त नहीं था। यहां तक कि दक्षिण बिहार और झारखंड वाले इलाके में भी बहुत जगह बारिश हुई थी और धान की रोपनी का काम ठीक ही चला था।
बिहार बिहार विधानसभा में राज्य में बाढ़ और सूखे पर बहस चल रही थी और सरकार की तरफ से कृष्ण बल्लभ सहाय विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ या सूखे की स्थिति पर बयान दे रहे थे।
इसी बीच इग्निशियस कुजुर ने उनसे पूछा कि छोटानागपुर में कोई सरप्लस एरिया है या नहीं? इस पर कृष्ण बल्लभ सहाय का कहना था कि हमने कब कहा है कि वहां सरप्लस एरिया है? इस साल तो ऐसी बात नहीं है इस साल तो धान की रोपनी हुई है लेकिन अगर आप फिर भी कहेंगे इस साल भी वहां धान की रोपनी नहीं हुई तो मुझे इस पर सत्यनारायण की कथा की बात याद आती है।
कथा इस तरह है कि एक महाजन कमाई कर के गांव में हीरा, मोती और जवाहरात लाद करके घर लिये जा रहा था। लेकिन रास्ते में लोगों ने यूं ही पूछा कि नाव पर लाद कर क्या लिये जा रहे हैं? तो महाजन ने कहा कि लत्ता-पत्ता लाद कर लिये जा रहे हैं और घर पहुंचने पर नाव में सचमुच लत्ता-पत्ता ही निकला। मैं यह कह रहा था कि पिछले साल रांची, पलामू, हजारीबाग और सिंहभूम जिले की हालत बहुत ही खराब थी लेकिन इस साल ऐसी बात नहीं है। इस साल वर्षा हुई है और धान की खेती हुई है। हम खुद इन आंखों से देख कर आये हैं लेकिन अगर आप अभी भी यह कहें कि इस साल भी खेती खराब हो गयी है तो कोई बात नहीं है। उनका प्रश्नकर्ता को सुझाव था कि आप ऊपर की कथा को याद रखिये।
उनका इशारा था कि जब आप वापस जाएंगे तो आपके इलाके में शायद लत्ता-पत्ता ही मिलेगा।