बिहार -बाढ़-सुखाड़-अकाल
बिहार के उपर्युक्त विषय पर लिखते समय मुझे मुजफ्फरपुर में 1962 में घटी एक हृदय विदारक नौका दुर्घटना की जानकारी मिली, जिसमें 13 लोग मारे गये थे। यह घटना 20 जून के दिन मीनापुर थाने में बागमती नदी के किनारे बसे हरका गाँव मे हुई, जिसमें 9 मृतकों की लाश कुछ समय बाद मिल गयी थी, जिसकी सूचना स्थानीय समाचार पत्रों में दी गई थी। यह नाव (डोंगी) एक बारात लेकर नदी को पार करने की कोशिश कर रही थी और बताया जाता है कि इसमें क्षमता से ज्यादा लोग सवार थे।
इस घटना की जानकारी लेने के लिए हमने हरका गाँव, प्रखंड मीनापुर, जिला मुजफ्फरपुर के 81 वर्षीय बुजुर्ग श्री देवनारायण साह से बातचीत की जो इस दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे। उनका कहना था कि,
समस्तीपुर जिले से एक बारात तुर्की (मुजफ्फरपुर) आयी थी, जिसमें 50-60 के आसपास बराती रहे होंगे। विवाह सम्पन्न हो जाने के बाद बारात तुर्की से वापस समस्तीपुर जा रही थी और उसे हमारे गाँव हरका के पास घाट से उस पार जाकर समस्तीपुर की यात्रा करनी थी।
अधिकतर बाराती एक बड़ी नाव में बैठ कर उस पार चले भी गये थे और करीब 12 बाराती उन नावों में जगह नहीं पा सके तो घाट पर मौजूद एक छोटी नाव (डोंगी) में बैठा कर एक मल्लाह ने उन लोगों को उस पार पहुँचाने की तैयारी कर ली थी। उसी समय हमारे गाँव हरका का एक आदमी जिसका नाम दिलचन्द साह था, वह बारातियों और मल्लाह से कह-सुन कर उस पार जाने के लिए उसी नाव में बैठ गया। नाव पर सवार होने वालों में वह तेरहवाँ आदमी था।
नाव खुल कर कुछ दूर तक जा भी चुकी थी कि धारा में मौजूद एक पुराने पुल से टकरा कर नदी में पलट गयी और सभी यात्री नदी में डूब गये और उनमें से कोई भी आदमी निकल नहीं पाया। नाव का खेवैया मल्लाह, जिसके हाथ में नाव को आगे ठेलने के लिये बाँस की लग्गी थी। वह किसी तरह से तैर कर किनारे लग गया और वहाँ से भाग निकला। नदी के किनारे और भी बहुत से लोग थे, जिनमें कुछ मल्लाह थे जिनके पास कुछ जाल भी थे। उन लोगों ने डूबने वालों यात्रियों को भरसक बचाने और उन्हें निकालने का प्रयास किया मगर किसी को भी जीवित निकाल पाने में उन्हें सफलता नहीं मिली।
जब तक जैस-तैसे उन यात्रियों तक पहुँचा जा सका तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनमें से किसी को भी जीवित नहीं निकाला जा सका। वह सबके सब मर चुके थे। मरने वालों में हमारे गाँव हरका का एक आदमी दिलचन्द साह भी था।
सारी लाशों को नदी से निकाल कर किनारे पर रख दिया गया था और कोई 13 लाशें मिल पायी थीं। बाद में तो पुलिस भी आ गयी थी और जरूरी कार्रवाई करके लाशों को अपने कब्जे में ले लिया। बाकी बारातियों को जब दुर्घटना का पता लगा तो वह भी खोज-खबर लेने के लिये हरका आये थे। गनीमत इतनी हुई कि दूल्हा-दुल्हन दूसरी नावों में सवार थे तो उनकी तो कम से कम जान बच गयी।
तारीख तो याद नहीं है पर उस दिन बुधवार था। बरसात के मौसम में तो यह सब होता ही रहता है पर इस बार ऐसा जून में ही हो गया वह जरा चिन्ता का विषय था।
(20 जून, 1962 को बुधवार ही था।)
श्री देव नारायण साह