रामनगरी अयोध्या में नव सृजन का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है, देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर की आधार शिला रखा जाना रामभक्तों के लगभग 500 वर्ष के इंतजार पर आज विराम लगा रहा है. अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया है, जिसका भूमि पूजन आज प्रधानमंत्री सहित अनेकों रामभक्त कर रहे हैं. इस दौरान राज्यपाल, मुख्यमंत्री और संघ प्रमुख भी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने. भूमिपूजन और कार्यारम्भ के इस मंगल अवसर पर रामलला का बेहद मनमोहक श्रृंगार किया गया है, जो स्वयं में बेहद खास है.
गौरतलब है कि 492 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद यह क्षण आया है. हालांकि राम जन्मभूमि पर विवाद 15वीं सदी से चलता आ रहा है किंतु प्रमुखता से इसे सर्वप्रथम वर्ष 1813 में उठाया गया था, जब भारत पर अंग्रेजी हुकूमत का शासन था लेकिन अंग्रेज भी इस मामले को सुलझा नहीं पाए थे. 1857 की क्रांति के चलते यह विवाद कुछ थमा तो अंग्रेजो ने दो वर्ष बाद ही मस्जिद के सामने एक दीवार बनाकर परिसर के भीतरी हिस्से में मुस्लिमों और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी.
वर्ष 1885 में मंदिर-मस्जिद विवाद गहराया और मामला जिला अदालत में पहुंचा और इसके बाद लगातार यह मामला खींचता चला गया. वर्ष 1934 में हुए साम्प्रदायिक दंगों ने मस्जिद की दीवार, गुंबद आदि को नुक्सान पहुंचाया. वर्ष 1949 में एक बार फिर भगवान राम की मूर्ति को लेकर हिन्दू-मुस्लिम विवाद के चलते सरकार ने इस स्थल पर ताला लगवा दिया. इसके बाद दोनों पक्षों की ओर से लगातार प्रयास जारी रहे और वर्ष 1992 में हुए साम्प्रदायिक दंगों में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया. जिसके बाद यह मामला चलता रहा. विहिप ने वर्ष 2002 में राममंदिर बनाने का ऐलान किया जिसके बाद वर्ष 2002 में गोधरा कांड हो गया, जिसक बाद सुप्रीमकोर्ट ने विवादित स्थल को यथास्थिति में रखने का निर्णय लिया. वर्ष 2010 में अयोध्या हाई कोर्ट ने इस मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया, जिसमें एक राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ़ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को मिला.
वर्ष 2011 में सुप्रीमकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी और फिर अपीलों व सुनवाई का लंबा दौर शुरू हुआ और राम मंदिर पर सबसे बड़ा फैसला 9 नवंबर 2019 में आया, जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन रामलला विराजमान को देने का आदेश दिया और मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का निर्णय सुनाया. जिसके बाद फरवरी में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बना.
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