आधुनिक भारत के जनक कहे जाने वाले 19वीं सदी के सुप्रसिद्ध समाज-सुधारक एवं विद्वान राजा राम मोहन रॉय ने आज ही के दिन वर्ष 1833 में ब्रिटेन के स्टाप्लेटोन में अंतिम सांस ली थी. भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य शिक्षा को साथ साथ लेकर चलने वाले राजा राम मोहन रॉय ने तत्कालीन समय में समाज में फैली हुयी कुरीतियों का घोर विरोध किया था. विशेष तौर से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ उन्होंने आवाज़ उठाई.
उस समय बाल विवाह, सती प्रथा, अंधविश्वास जैसी सामाजिक कुरीतियां अपने चरम पर थी. छोटी छोटी बालिकाओं का विवाह वृद्ध पुरुषों से करा दिया जाता था और फिर जल्द ही उनकी मृत्यु होने पर उन्हें भी अपने पति के चिता के साथ जिन्दा जला दिया जाता था. इसी कुप्रथा के चलते राजा राम मोहन रॉय की खुद की भाभी को भी ऐसे ही जलाकर मार डाला गया, जिसके बाद उन्होंने प्रण लिया कि वें इस कुप्रथा को बंद करायेंगे.
सती प्रथा का उन्मूलन करने के लिए वें तमाम विरोधों के बावजूद भी डटे रहे, विरोध करने वाले कट्टरपंथियों ने उन्हें अंग्रेजी सरकार का एजेंट तक करार दे दिया लेकिन उन्होंने किसी भी बाधा को अपने दृढ निश्चय के बीच नहीं आने दिया और उनके प्रयासों के चलते वर्ष 1829 में सती प्रथा पर क़ानूनी रूप से प्रतिबंध लगाया गया. धन्य हैं समाज के ऐसे सच्चे योद्धा, जिन्होंने एक बड़ी सामाजिक बुराई को समाप्त करने के लिए हर मुश्किल को पार किया, आज भी हमारे समाज में ऐसी ही बहुत सी बुराइयां हैं जहां धर्म, संप्रदाय अथवा जाति के नाम पर लोगों के साथ अत्याचार किया जाता है. हमें भी राजा राम मोहन रॉय जैसे प्रेरक महापुरुषों के जीवन से सीख लेकर इन बुराइयों को पछाड़ना होगा और विकसित राष्ट्र व समाज की संकल्पना को मूर्त रूप देना होगा.
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