विश्व भर में बालिकाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने, कन्याओं की समस्याओं और चुनौतियों को समझने और उनके मानवाधिकारों की पूर्ति हेतु अनिवार्य कदम उठाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस वैश्विक रूप से मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 19 दिसम्बर, 2011 में ही एक प्रस्ताव पारित करके इस दिवस को मनाने की घोषणा कर दी गई थी।
पहले के समय में ऐसी बहुत सी प्रथाएँ एवं कुरीतियां हमारे समाज में रही हैं, जिनके कारण कन्याओं को नारकीय जीवन जीना पड़ा है, भारत में बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी रूढ़िवादी प्रथाएँ रही हैं, जिनमें से कुछ का उन्मूलन पूरी तरह से हो चुका है और अधिकतर आज भी भारतीय समाज में अपनी जड़ बनाए हुए हैं। हालांकि आधुनिक समय में कन्याओं के संरक्षण और उनकी शिक्षा के लिए भी प्रयास काफी अधिक किए गए हैं।
यदि विश्व बालिका दिवसके इतिहास पर नजर डालें तो सबसे पहले इसकी शुरुआत का श्रेय एक गैर सरकारी संगठन "प्लान इंटरनेशनल" प्रोजेक्ट के द्वारा की गई थी। इस संगठन के माध्यम से "क्योंकि मैं एक लड़की हूं" नाम से एक अभियान की शुरुआत की गई थी, जिसका विस्तार वैश्विक रूप से करने के लिए संगठन ने कनाडा सरकार से मांग रखी। इसके बाद कनाडा सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की 55वीं महासभा में इस प्रस्ताव को रखा और इस तरह संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस प्रस्ताव को पारित करते हुए 11 अक्टूबर का दिन "अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस" के रूप में चुना।
भारत में भी आज सरकारी व गैर सरकारी तौर पर भी बेटियों को सशक्त बनाने की दिशा में बहुत से प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें सरकार की "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ", "सुकन्या समृद्धि योजना", "मुख्यमंत्री लाड़ली योजना", "सीबीएसई छात्रवृति योजना" आदि सम्मिलित हैं। हालांकि देश में कन्याओं के प्रति भेदभाव पूर्ण व्यवहार को लेकर अभी भी बहुत से कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
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