नवरात्रि के अंतिम दिन माँ सिद्धिरात्रि की साधना और उपासना की जाती है. माता के इस स्वरुप के पूजन में कन्यापूजन का भी विशेष विधान है. देवी दुर्गा के नौ रूपों में सिद्धिरात्रि नौवीं शक्ति स्वरूपा हैं. वें आदि शक्ति हैं, जिनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशवान होता है. मां सिद्धिरात्रि के पूजन के साथ ही पावन नवरात्रों का यह उत्सव समाप्त हो जाता है और इनके पूजन से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
दुर्गा सप्तशती के अध्यायों के अनुसार मां सिद्धिरात्रि सभी मनोवांछित कामनाओं को सिद्ध करने वाली हैं तथा इनके पूजन से सभी रिद्धि-सिद्धि घर आते हैं, जिससे शुभता और मंगल का आगमन भी भक्तों के जीवन में होता है. मां सरस्वती का अवतार मानी जानी वाली माता सिद्धिरात्रि की तपस्या से भगवान शिव को भी सिद्धि की प्राप्ति हुई थी. इस तपस्या से शिव जी का आधा शरीर नारी का होकर वें भगवान अर्द्धनारीश्वर के रूप से विख्यात हुए.
देवी दुर्गा का प्रत्येक स्वरुप पूजनीय है और हमें हर्षोल्लास से भर देने वाला है. जैसे माता अपने बच्चों की प्रथम गुरु मानी जाती है और अपने सौम्य, गंभीर, हास्यप्रद, क्रोधित, विनम्र, आदर्श इत्यादि प्रत्येक गुण के द्वारा बच्चों को कुछ न कुछ सिखाती है. ठीक वैसे ही मां दुर्गा के भी ये नव स्वरुप हैं, जिनसे हम सभी कुछ न कुछ गुण अर्जित करते हुये संसार रूपी सागर को पार करते हैं.
तो आप सब भी माता का पूजन करें, स्त्रियों का मान सम्मान करें और समाज में प्रेम-भाव को बनाये रखने में अपना योगदान देते रहे, तभी सही मायनों में हम त्यौहारों के गौरव को बरक़रार रख सकते हैं. आप सभी भक्तजनों पर मां दुर्गा के नवम स्वरुप देवी सिद्धिरात्रि का आशीष और प्रेम सदा सर्वदा ऐसे ही बना रहे, इन्हीं मनोकामनाओं के साथ आप सभी को अंतिम नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं.
आपका
अमल कुमार
प्रदेश अध्यक्ष (युवा जदयू दिल्ली प्रदेश)
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