या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
नव दुर्गा के नौ रूपों में से छठे दिवस पर देवी के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है. माता के इस स्वरुप के पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है एवं मस्तिष्क शुद्ध होता है. मां पार्वती का ही दूसरा नाम कात्यायनी है, जिन्हें गौरी, काली, उमा आदि नामों से भी देशभर में पूजा जाता है. स्कन्द पुराण में कहा गया है कि वे परमपिता परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थी और उन्होंने देवी पार्वती के आदेश पर दानव महिषासुर का वध कर धरती को स्वच्छ किया था.
माता के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इसलिए उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया. इसके साथ ही श्रीमद भागवत गीता के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्यायनी का पूजन किया था, जिसके चलते उन्हें बृज में कुलदेवी की उपाधि भी मिली हुई है.
देवी दुर्गा का प्रत्येक स्वरुप पूजनीय है और हमें हर्षोल्लास से भर देने वाला है. जैसे माता अपने बच्चों की प्रथम गुरु मानी जाती है और अपने सौम्य, गंभीर, हास्यप्रद, क्रोधित, विनम्र, आदर्श इत्यादि प्रत्येक गुण के द्वारा बच्चों को कुछ न कुछ सिखाती है. ठीक वैसे ही मां दुर्गा के भी ये नव स्वरुप हैं, जिनसे हम सभी कुछ न कुछ गुण अर्जित करते हुये संसार रूपी सागर को पार करते हैं.
आप सभी भक्तजनों पर मां दुर्गा के छठवें स्वरुप देवी स्कंदमाता का आशीष और प्रेम सदा सर्वदा ऐसे ही बना रहे, इन्हीं मनोकामनाओं के साथ आप सभी को छठवें नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं.
आपका
अमल कुमार
प्रदेश अध्यक्ष (युवा जदयू दिल्ली प्रदेश)
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