आज सारी दुनिया में मानव सभ्यता का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुके कोरोना वायरस संक्रमण का दौर चल रहा है और यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि यह वर्तमान का सबसे बड़ा विपत्तिकाल है. यदि भारत में आकड़ों पर नजर डालें, तो पाएंगे कि 5 मई तक कोरोना के एक्टिव पॉजिटिव मरीजों की संख्या 32138 है, जिनमें 12726 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं और देश में 1568 मरीजों की मृत्यु कोरोना संक्रमण के चलते हो चुकी है. इस आपदाकाल में सरकार की लॉकडाउन की कवायद लगातार जारी है और गृहमंत्रालय के निर्णय के अनुसार लॉकडाउन बढ़ाने का आदेश 17 मई तक के लिए जारी कर दिया गया है. जहां एक ओर सरकार लॉकडाउन के जरिये लोगों को बचाने की और सुरक्षित रखने की बात कर रही है तो वहीं दूसरी ओर बड़े ही बेतुके ढंग से सरकार ने अर्थव्यवस्था का हवाला देते हुए शराब की दुकानों को खोलने का फरमान जारी कर दिया. शराब जो एक ओर सेहत के लिए जहर है, तो वहीं कोरोना काल में तो यह ओर अधिक बर्बादी लाने वाला हथियार साबित हो सकती है, ठेकों पर लगी भीड़ तो यही दिखा रही है कि जनता को सुरक्षित रखने की सरकार की तमाम कोशिशें कहीं व्यर्थ होने की कगार पर तो नहीं है.
देश के सभी सीएम को आज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सबक लेने की जरुरत है कि कैसे बिना शराब के राज्य का विकास किया जाता है. मुख्यमंत्री जी ने बिना किसी राजस्व की परवाह करते हुए एक सच्चे राजनीतिज्ञ की भांति अपने राज्य के निवासियों के स्वास्थ्य को वरीयता दी है. इसी प्रकार की सीख सभी मुख्यमंत्रियों को भी आज लेने की जरुरत है. आंकड़े बताते हैं कि देश में हर माह तकरीबन 20 हजार मौतें तो शराब पीने से ही हो जाती हैं, जिनमें पिछले 40 दिनों में कमी दर्ज की गयी, परिवारों में सुख-शांति रही. लेकिन अब संकट के इस समय में भी सरकार ने ठेकों को खोलकर जिस भीड़ को आमंत्रण दिया, क्या उससे कोरोना के मामलों में उछाल नहीं आएगा? क्या इस निर्णय के कारण होने वाले नुक्सान से अर्थव्यवस्था नहीं चरमरा जाएगी?
कोरोना काल में शराब के ठेकों को खोलने के चलते जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई गयी वह स्थिति देश व समाज के लिए बहुत ही चिंतनीय है, यह एक गलती आने वाले समय में देश के लोगों के जीवन पर बहुत भारी पड़ सकती है. वैसे भी हम लोगों के सामने व सरकार के सामने कोरोना काल में लापरवाही के चलते जबरदस्त खामियाजा उठाने के उदाहरण विश्व के अलग-अलग देशों में भरे पड़े हैं. मेरा सरकार से यही निवेदन है कि किसी भी प्रकार का निर्णय जल्दबाजी में लेने के बजाय दूरदर्शिता से काम लें. अर्थशास्त्रियों से चर्चा करके निर्णय लें और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अन्य विकल्पों का आश्रय लें ताकि जनता का स्वास्थ्य जो कि सबसे पहली वरीयता है, उस पर ध्यान दिया जा सके और भारत को दूसरा अमेरिका या इटली बनने से रोका जा सके.