दिवाली के छह दिन बाद आने वाला छठ पर्व मूल रूप से सूर्योपासना का पर्व है, जिसका आरंभ दिवाली के मात्र चार दिन बाद से ही हो जाता है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से मनाया जाने वाला यह पर्व “नहाय खाय” की विधिवत परम्परा के साथ शुरू होता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का परायण होता है.
छठ पर्व को लेकर प्रचलित लोक मान्यताओं के अनुसार सतयुग में जब प्रथम देवासुर संग्राम में देवता असुरों से पराजित हो गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की उपासना की थी, तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. छठी मैया के प्रताप से माता अदिति को पुत्र रूप में त्रिदेव रूप आदित्य भगवान की प्राप्ति हुयी, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहा जाता है कि इसके बाद से छठ पर्व मनाने का चलन शुरू हो गया.
नहाय खाय का महत्त्व:
छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय के नाम से जाना जाता है, जिसमें व्रती सम्पूर्ण घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है. जिसके बाद व्रती नदी अथवा तालाब में जाकर स्नान करता है और वहां से लाये हुए शुद्ध जल से ही भोजन बनाया जाता है. परम्परागत रूप से बनाये गए भोजन में कद्दू, मूंग-चना दाल, चावल शामिल होते हैं तथा तला हुआ भोजन वर्जित होता है. व्रती एक समय यह भोजन ग्रहण करता है और पूरी शुद्धता व पवित्रता का ध्यान रखते हुए छठ पर्व का यह पहला दिन समाप्त होता है.