हाल ही में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से मार्च, 2019 तक प्रदेश की सभी नदियों की जलीय गुणवत्ता से संबंधित रिपोर्ट जारी की गयी है, जिसमें मेरठ की काली नदी एवं हिंडन नदी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा शून्य बताई गयी है. मुख्यतः सहारनपुर जिले में शिवालिक पहाड़ियों के ढलान कालूवाला खोल से प्रवाहित होने वाली हिंडन नदी यमुना की प्रमुख सहायकों में से एक है और मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली, बागपत, गाज़ियाबाद आदि जनपदों में बहते हुए बहुत से विषाक्त नाले हिंडन में गिराए जा रहे हैं.
यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में गंगा, वरुणा, काली, रामगंगा, सई,
हिंडन, गोमती, सरयू, घाघरा, बेतवा, यमुना सहित अन्य कुछ नदिकाओं से भी आंकडें
जुटाए गए हैं. इस रिपोर्ट के अंतर्गत जिन पैमानों पर नदी जल गुणवत्ता की जाँच की
गयी, वें इस प्रकार हैं..
1. ऑक्सीजन डिमांड (डीओ)
2. बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीडीओ)
3. टोटल कोलीफोर्म
4. फीकल कोलीफोर्म
पिछले दो वर्ष से हिंडन नदी में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर शून्य होने के कारण
यह नदी जलीय जीवन के लिए घातक बन चुकी है, क्योंकि जलीय जीवन के जीवित रहने के लिए
प्रति एक लीटर जल में कम से कम 4-5 मिलीग्राम डीओ आवश्यक है. वर्ष 2017 में हिंडन नदी
में यह मात्रा 0.50 (सहारनपुर) मिलीग्राम प्रति लीटर थी और उसके बाद से यह लगातार
घटते हुए शून्य हो गयी.
मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, बागपत जनपदों में जिस प्रकार इंडस्ट्रियल वेस्ट, अनट्रीटिड सीवेज, हॉस्पिटल अपशिष्ट आदि बहाये जा रहे हैं, उससे हिंडन किनारे बसे ग्रामीण निरंतर कैंसर, ब्रोंकाइटिस, किडनी फेलियर, हृदय रोग, इनफर्टिलिटी जैसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. नदी में बढ़ते हैवी मेटल जैसे, लेड, मरकरी, केडमियम, आर्सेनिक आदि के कारण भूमिगत जल भी निरंतर दूषित हो रहा है.
विगत वर्ष अगस्त में एनजीटी द्वारा एक अध्ययन के हवाले से बताया था कि किस
प्रकार हिंडन किनारे स्थित बागपत के गंगौली ग्राम में बीते कुछ समय से कैंसर
मरीजों की संख्या में निरंतर इजाफ़ा हो रहा है, अकेले इस ग्राम में कैंसर के कारण
71 से अधिक लोग मर चुके हैं, जो बेहद चिंताजनक है.
इस प्रकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ही हिंडन की अविरलता को बनाए रखने में बाधा उत्पन्न कर रहे
कारखानों और नालों की पुष्टि कर उन पर रोक के आदेश राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा दिए गये थे. परन्तु वहीं आईआईटी रुड़की की जारी रिपोर्ट से यह साफ़ हुआ है कि आज भी मुज्जफरनगर
के नालों से हिंडन नदी में भारी मात्रा में कैंसरकारक रसायन उडेला जा रहा है.
नीर फाउंडेशन के निदेशक रमनकांत त्यागी के अनुसार,
“आईआईटी रुड़की की यह रिपोर्ट बेहद खतरनाक है. मुजफ्फरनगर से बहने वाला यह विषाक्त कचरा हिंडन नदी में जहर की तरह घुला है और साथ ही मेरठ के भी छ: नालों का विषाक्त रसायन काली नदी पूर्वी को समाप्त कर रहा है. सब्जियों में भी कैंसरकारक रसायन मिल रहे हैं. मैंने एनजीटी में वाद दर्ज कराया है.”
नदी प्रदूषण को देखते हुए हिंडन को भी “नमामि गंगे अभियान” का हिस्सा बनाया
गया है. परन्तु इसे लेकर किये जा रहे सरकारी प्रयासों का कोई बड़ा असर अभी तक
धरातलीय रूप से देखने को नहीं मिला है. पिछले कुछ वर्षों से मेरठ मंडलायुक्त डॉ. प्रभात कुमार ने निर्मल हिंडन
अभियान की अलख भी जगाई हुई थी, जिसके अंतर्गत हिंडन को मॉडल नदी के तौर पर
विकसित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राजस्व व वन विभाग, नीर फाउंडेशन सहित विभिन्न एनजीओ, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत हिंडन किनारे बसे
ग्रामों की जनता ने भी निर्मल हिंडन के लिए सहयोग दिया, परन्तु जब तक गहतक रसायन
घोल रही इंडस्ट्रियल इकाइयों पर रोक नहीं लगायी जाती, तब तक कोई भी प्रयास सही असर
नहीं कर पायेगा.
बहुत से पर्यावरणविदों का मानना है कि सर्वप्रथम कारखानों से आने वाले
अपशिष्टों को रोका जाना आवश्यक है, साथ ही विभिन्न जनपदों में नदी किनारे से
अतिक्रमण हटाया जाये और वाटर बॉडी का निर्माण किया जाये..जिससे वर्षा का पानी
एकत्रित किया जा सके और नदी को पुनर्जीवन मिले.