वर्ष 1999
-2001 में सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक,
नदी के पानी (नदी के पानी
और हैंड- पंप) की कुल लंबाई के साथ एकत्रित सैकड़ों नमूनों के परिणाम वास्तव में
चौंकाने वाले थे. इन नमूनों में, सीसा,
क्रोमियम,
लौह,
जस्ता तथा
अन्य कई तत्व मौजूद थे.
रिपोर्ट के मुताबिक निम्न ग्राम नदी के प्रदूषित जल से बुरी तरह प्रभावित थे :-
1. मुजफ्फरनगर जिले के चिदोरा,
याहियापुर और जमाद गांव.
2. मेरठ जिले के धांजू, देडवा,
उलासपुर, बिछौला, मैन्थना, रसूलपुर, गेसुपुर, कुडला, मुरादपुर बदौला, कौल,
जयभीमनगर और यादनगर.
3. गाजियाबाद जिले के अजरादा
एवं हापुड़.
4. बुलंदशहर जिले के
अकबरपुर, साधारनपुर, उतसरा, अजीतपुर, लौघारा, मनखेरा, बकनौरा तथा आंचरुकला.
5. अलीगढ़ के मैनपुर,
सिकन्दरपुर और रसूली.
6. कन्नौज के राजपुरा,
बालीपुर तथा नवीनगंज.
सुरक्षित पय जल के अभाव में इन सभी
गांवो में लोगों का जीवन दयनीय हो गया. रिपोर्ट के मुताबिक,
मेरठ और गाजियाबाद के
साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में 30-35 मीटर की गहराई तक,
भारी धातुएं मानकों से
कहीं अधिक सीमाओं में पाई गई हैं.
वर्ष 1999 में, केंद्रीय भूजल बोर्ड के
अध्यक्ष डॉ डी. के. चड्डा और
क्षेत्रीय निदेशक श्री पी. सी. चतुर्वेदी के दिशानिर्देशों पर नदी पर किए गए
रासायनिक परीक्षणों और काली नदी (पूर्व) और आसपास के इलाकों और मेरठ और गाजियाबाद
से एकत्रित भूजल के नमूनों के आंकड़ों के आधार पर एक प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार की
गई थी. जिसे भारतीय सरकार के तत्कालीन जल संसाधन मंत्री, श्री सोमपाल शास्त्री ने
गंगानगर, मेरठ में आयोजित एक जन जागरूकता
अभियान के दौरान जारी किया गया. काली नदी पर यह प्रारंभिक रिपोर्ट भूजल और नदी के
पानी में भारी धातुओं की उपस्थिति पर आधारित थी, इस रिपोर्ट की दर्जनों प्रतियां
तैयार की गयी, जिन्हें कई स्थानीय लोगों के बीच वितरित किया गया.
क्षेत्रीय निदेशक श्री शोभनाथ ने अध्ययन के दायरे को और
अधिक विस्तृत करने के उद्देश्य से हिंदी में व्यापक संदर्भ के साथ रिपोर्ट पेश
करने का निर्देश दिया. अंग्रेजी में यह रिपोर्ट एक आम आदमी के लिए ज्यादा उपयोगी
नहीं थी. क्षेत्रीय निदेशक के सुझाव पर, रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद करके पुन: प्रकाशन किया गया था.