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अमल कुमार-जान है तो जहान है कोरोना हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत

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  • April-23-2022

अमल कुमार-जान है तो जहान है कोरोना  हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत -

अप्रैल माह वैश्विक रूप से विविधता और नवऊर्जा का प्रतीक महीना है. मुख्यत: अप्रैल का नाम ग्रीक गॉडेस, एफ़्रोडाइट के नाम पर रखा गया है. रोमन कैलेंडर के अंतर्गत चौथे महीने को पहले अप्रिलिस लिखा जाता था, जिसका अर्थ है "खुल जाना." उत्तरी गोलार्द्ध के अंतर्गत इस माह को बसंत ऋतू का प्रतीक माना जाता है, जिसमें वृक्ष फलों और फूलों से लद जाते हैं और इसी विशिष्टता के चलते इस माह को अप्रैल नाम दिया गया.

हालांकि इस वर्ष नवसृजन का प्रतीक यह माह कोरोना के भय के बीच आया है, अंग्रेजी नववर्ष के हिसाब से भी देखा जाए तो जनवरी से ही यह महामारी चीन में अपने पैर पसार चुकी थी और फिर वहां से यह सभी देशों में चली आई और फिलवक्त यह तमाम विश्व में खौफ का पर्याय बनी हुयी है. वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के आगाह पर लगभग सभी देशों को लॉकडाउन कर दिया गया है. 

अमल कुमार-जान है तो जहान है कोरोना  हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत -

आइयें जानते हैं कैसे महामारी के इस दौर में अपने स्वास्थ्य का रखें ख्याल, कैसे बीमारियों को खुद से दूर रखें और कैसे अप्रैल माह में बदलते मौसम के बीच खुद को रखें फिट एंड फाइन. 

1. अप्रैल में जलवायु परिवर्तन –

अमल कुमार-जान है तो जहान है कोरोना  हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत -

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार मार्च से ही ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है और उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में मार्च से ही सूर्य की कर्क रेखा की ओर बढ़त के साथ ही तापमान में भी वृद्धि होने लगती है. सामान्यत: अप्रैल माह में तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ही रहता है, जिसमें बढ़त निरंतर जारी रहती है, वहीं दक्षिणी भारत में हालांकि तापमान तो अधिक रहता है, परन्तु प्रायद्वीपीय स्थिति के चलते मौसम मृदु बना रहता है.

वहीँ परंपरागत रूप से छ: ऋतुओं में विभाजित भारतीय मौसम चक्र के अंतर्गत चैत्र माह को बसंत ऋतु का ही अंतिम माह माना जाता है. चरक संहिता के कथनानुसार शिशिर ऋतु को उत्तम बलवाली, बसंत ऋतु को मध्यम बलवाली और ग्रीष्म ऋतु को दौर्बल्य वाली ऋतु माना गया है.

चूंकि अप्रैल में तापमान अधिकता से बढ़ता है, इसलिए इसे ग्रीष्म ऋतू के अंतर्गत ही सम्मिलित किया जा सकता है. ग्रीष्म ऋतु में गरम जलवायु शरीर में पित्त एकत्र करती है और प्रकृति में होने वाले परिवर्तन शरीर को प्रभावित करने लगते हैं.

गर्मी के बढ़ने से शरीर की धातुएं भी क्षीण होने लगती है, सूर्य की प्रखर किरणें शारीरिक ऊर्जा को सोखने का कार्य करती हैं, जिससे थकान और कमजोरी महसूस होना सामान्य है. अप्रैल माह में विशेष रूप से गर्मी बढ़ने के साथ साथ ही धूल भरी आंधी भी चलने लगती है, मौसम में होने वाले इस बदलाव से होने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं..

1. मौसम बदलने के साथ ही वातावरण में वायरस सक्रिय हो जाते हैं.

2. वायु में बैक्टीरिया के कण बड़ी मात्रा में उत्पन्न होते हैं, जो तेज हवा चलने से धूल के अन्य कणों के साथ ही शरीर में प्रवेश करने लगते हैं.

3. तापमान बढ़ने से शरीर में पित्त की मात्रा भी बढती है, जो प्रतिरोधक क्षमता को धीमा कर देती है और वायरल इन्फेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है.

2. मौसमी फल एवं सब्जियां -

अमल कुमार-जान है तो जहान है कोरोना  हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत -

जिस प्रकार मौसम में परिवर्तन होता है उसी प्रकार हमें भी अपनी जीवनशैली व खानपान में परिवर्तन करना पड़ता है. सर्दियों के मौसम के बाद गर्मियों का आरंभ होने लगता है. इसी कारण शरीर में पोषक तत्वों का अभाव होने लगता है, जिससे शरीर से जल की मात्रा भी कम होने लगती है तो इसी लिहाज से गर्मियों में जलतत्व से भरपूर सब्जियों व ठंडे तासीर वाले फलों को अपने डायट चार्ट में शामिल किया जाता है. जिससे शरीर में जल की आपूर्ति भी होती रहे और साथ ही आवश्यक पोषक तत्व भी शरीर को प्राप्त होते रहें.

कुछ इस प्रकार की सब्जियां व फल अपने खाने में प्रयोग कर आप गर्मियों में स्वस्थ रह सकते हैं :

करेला - विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर करेला सम्पूर्ण भारत में सब्जी व अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. करेला स्वाद में बेहद कड़वा होता है परन्तु यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है.

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लौकी/घीया – भरपूर मात्रा में जलतत्त्व से परिपूर्ण लौकी ज्यादातर लोगों को खाने में पसंद होती है. गर्मियों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाली लौकी से लोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हैं, जैसे लौकी की भाजी, लौकी का रायता, नवरात्रि व्रत में खाई जाने वाली लौकी की खीर व बर्फी इत्यादि.

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खीरा - शरीर की आन्तरिक तपन को शांत करने में खीरा सर्वाधिक सहायक होता है. जिसे केवल भारत में ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में लोग प्राय: 12 महीने सलाद के रूप में प्रयोग करते हैं, परन्तु अप्रैल माह से यह ताजा व सरल रूप से बाज़ार में उपलब्ध होता है.

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कद्दू/सीताफल – गर्मियों के दिनों में सर्वाधिक रूप से प्रयोग में लाया जाने वाले कद्दू में पोटेशियम व फाइबर की मात्रा प्रचुर रूप से होती है. भारत में लोग प्राय: कद्दू को सब्जी बनाने के साथ-साथ, सूप आदि के रूप में भी सेवन करते है.

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तोरई – तोरई जिसे ‘तुरई’ व ‘तुरूई’ के नाम से भी जाना जाता है. यह सर्वत्र भारतवर्ष में सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है. आयुर्वेद के अनुसार यह पित्त व कफ़ दोष को समाप्त करती है. तराई को सब्जी, सूप, चटनी अथवा रायते के रूप में प्रयोग में लाया जाता है.   .

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शरीर को शीतलता प्रदान करते कुछ फल

बेल -  बेल अथार्त वुड एप्पल आध्यात्मिक दृष्टि से पूजनीय होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर है. कफनाशक प्रवृति होने के कारण बेल पेट के लिए पूर्ण रूप से औषधि का कार्य करता है. बेल का जूस गर्मियों में शरीर को तरोताजा बनाये रखने में बेहद लाभप्रद है.  

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संतरा – स्वास्थवर्धक गुणों से भरपूर संतरे में विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होती है. रक्तशोधक व शक्तिवर्धक संतरे का लोग फल के रूप में तो सेवन करते ही हैं साथ ही इसे जूस, स्मूदी के तौर पर भी गर्मियों में शरीर को शीतलता देने में प्रयोग किया जा सकता है.

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आम – फलों के राजा का ताज सर पर पहने आम में निहित पोषक तत्त्व हमारे शरीर के लिए बेहद उपयोगी होते हैं. आम एक ऐसा फल है, जिसकी भारत में विभिन्न किस्में उपलब्ध होती है. केवल भारत में ही नही यह फल सम्पूर्ण विश्व में अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध है. आम केवल फल के ही रूप में नही अपितु आमरस, लस्सी, शेक, एवं आम पापड़ के लिए भी लोगों के मध्य लोकप्रिय है.

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अंगूर – अपने खट्टे-मीठे स्वाद से लोगों के बीच प्रसिद्ध अंगूर मात्र फल ही नही अपितु एक आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी जाना जाता है. इसके सेवन से शरीर गर्मियों में भी तरोताजा बना रहता है.

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3. योगासनों द्वारा पाएं उत्तम स्वास्थ्य 

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चैत्र माह से तापमान में तपिश होने लगती है, इसलिए प्राणायाम व कुछ योगासनों से शरीर को आन्तरिक ठंडक प्रदान की जा सकती है. व्यायाम हमारी जीवनशैली का महत्वपूर्ण अंग माना गया है और योगाभ्यास द्वारा शरीर की इम्युनिटी में भी वृद्धि की जाती है, जिससे शरीर विभिन्न रोगों से लड़ने में सक्षम हो सके. इसी दृष्टिकोण से हमें स्वस्थ शरीर व गर्मी से राहत पाने के लिए ऋतुचर्या के अनुसार प्राणायाम व आसनों को उपयोग में लाना चाहिए :

शीतली प्राणायाम

शीतली प्राणायाम अर्थात शरीर को शीतलता प्रदान करना. इसके लाभ इस प्रकार हैं..

1. इस प्राणायाम के माध्यम से व्यक्ति तनावमुक्त होता है.

2. शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए यह बेहद उपयोगी होता है.  

3. यह प्राणायाम त्वचा एवं नेत्र सम्बन्धी रोगों के लिए भी लाभदायक है.

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भ्रामरी प्राणायाम

भ्रमर की भांति स्वर निकाल कर करने वाले प्राणायाम को भ्रामरी प्राणायाम की संज्ञा दी गयी है.

1. इसके नियमित रूप से अभ्यास करने से व्यक्ति तनाव मुक्त होता है.

2. इसके द्वारा स्वच्छ वायु का शरीर में प्रवेश होता है.

3. मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से शरीर को स्वाभाविक शीतलता प्राप्त होती है.

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अनुलोम विलोम प्राणायाम   

श्वासों को साधने के लिए किया जाने वाले इस प्राणायाम के अनगिनत लाभ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है..

1. इस प्राणायाम के द्वारा व्यक्ति अपने शरीर की ऊर्जा प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायक होता है.

2. इसके अभ्यास से कुछ ही समय में व्यक्ति का मन स्थिर व शांत होता है.

3. अनुलोम विलोम प्राणायाम से तनाव व थकान से भी राहत मिलती है.

4. यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में भी कारगर सिद्ध होता है.

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शीतकारी प्राणायाम

मुख से “ओ” का आकार बनाकर साँस लेने से जीभ के द्वारा शीतल वायु शरीर के अंदर प्रवेश करती है, इसी प्रक्रिया को शीतकारी प्राणायाम कहा जाता है.

1. इस प्राणायाम के माध्यम से व्यक्ति को गर्मी से राहत मिलती है.

2. मुंह को खोलकर तथा जीभ को बाहर निकाल कर मुंह के द्वारा गहरी साँस लेने से ठंडी हवा का शरीर में समाहित होती है, जो गर्मी के लिए बेहद उपयोगी होता है.

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सर्वांगासन

चैत्र के दिनों में शरीर के तापमान में बेहद वृद्धि हो जाती है जिसे नियंत्रित करने में सर्वांगासन बेहद उपयोगी होता है.

1. इस आसन के द्वारा रक्त प्रवाह मस्तिष्क की ओर हो जाता है, जो शरीर के प्रत्येक अंग के लिए लाभकारी होता है.

2. इस आसन के नियमित अभ्यास से व्यक्ति के सभी रोग समाप्त होने लगते हैं.

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विशेष नोट - उच्च रक्तचाप व सर्वाइकल के रोगियों को इसे न करने की सलाह दी जाती है.

4. क्या होती है प्रतिरक्षा प्रणाली 

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किसी भी जीव के शरीर में होने वाली जैविक प्रक्रियाओं के समूह को उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जिसका कार्य किसी भी बाहरी रोगजनक तत्व या नियोप्लास्टिक कोशिकाओं की पहचान करना और फिर उन्हें समाप्त करना होता है, जिससे इन रोगजनकों से होने वाले रोगों से शरीर की रक्षा हो सके. इस बाहरी रोगजनक तत्वों में विषाणु, वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी कृमि आदि सम्मिलित होते हैं. इन रोगजनकों की पहचान करना बेहद मुश्किल काम है, जिसके लिए हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर से पोषक तत्व ग्रहण करती है. यह सभी जीवों जैसे मानवों, जंतुओं, पक्षियों, पौधों, वृक्षों आदि में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है. 

5. इस तरह बढ़ाये अपनी इम्युनिटी पॉवर 

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Covid-19 या नोवल कोरोनावायरस एक वैश्विक महामारी के रूप में देखा जा रहा है, जिससे चीन, अमेरिका, इटली, स्पेन, ईरान, फ़्रांस सहित दुनिया के लगभग सभी देश त्रस्त हैं. लाखों लोगों को प्रभावित कर रहा यह वायरस अब तक हजारों जानें ले चुका है. भारत में इससे प्रभावित लोगों की संख्या (2 अप्रैल, 2020 तक) 2000 का आंकड़ा पार कर चुकी है और लगभग 50 लोगों की जान इससे जा चुकी है. 

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Covid-19 से बचने के लिए कोई भी एंटीडॉट या दवा अब तक नहीं बनी है और जितने भी लोगों ने इससे रिकवरी की है वह अपनी बेहतर इम्युनिटी के दम पर. कोरोना से मरने वाले लोगों के आंकड़ों पर गौर करें तो उनमें बुजुर्गों और विभिन्न रोगों (जैसे डायबीटीज, ह्रदय रोग, थायरोइड, हाइपरटेंशन आदि) से ग्रसित लोगों की संख्या अधिक है. इसलिए यह बेहद जरुरी हो जाता है कि हमारी इम्यून क्षमता मजबूत हों ताकि किसी भी रोग से हम लड़ सकें. आगे दिए गए कुछ उपायों से हम अपनी इम्युनिटी को बूस्ट कर सकते हैं..

1. विटामिन सी युक्त आहार जैसे संतरा, आंवला, नींबू, पपीता, अमरुद, पालक, अखरोट, तुलसी के पत्ते आदि का सेवन अवश्य करें. 

2. विटामिन ई और डी भी हमारी इम्युनिटी को बूस्ट करते हैं, इनमें मुनक्का, बादाम, पालक, ब्रोकली आदि सम्मिलित हैं. साथ ही प्रयास करें आप दिन में कुछ समय सूर्य की रोशनी भी प्राप्त कर सकें.  

3. पोषक तत्त्वों के आलावा योग और प्रणायाम से भी इम्युनिटी बेहतर होती है, श्वसन तंत्र को सुचारू बनाने वाली प्रक्रिया अनुलोम-विलोम, भ्रामरी आदि के नियमित अभ्यास से आप स्वयं ही स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस करेंगे. 

4. पानी का सेवन अधिक करें, शरीर में वाटर लेवल संतुलित होने से भी आपकी प्रतिरोधक क्षमता सुचारू रूप से कार्य करती है.

5. गिलोय, तुलसी, अदरक, हल्दी, काली मिर्च जैसे आयुर्वेदिक तत्त्वों में एंटीबायोटिक, एंटीसेप्टिक, एंटी इंफ्लेमेटरी और जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं, जो किसी भी बीमारी से लड़ने में बेहद कारगर सिद्ध होते हैं.   

6. बेहतर आहार-विहार के साथ साथ सकारात्मकता से भरे विचार भी बेहद अहम हैं. अपनी सोच को पॉजिटिव रखें, प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ें, अच्छा संगीत सुने, अपनी हॉबी के अनुसार कोई कार्य करें या ऐसा कुछ भी जिससे आपको तरोताजा महसूस होता हो, वह एक्टिविटी अपनी दिनचर्या में जोडें.  

6. ऐसे रहें कोरोना के कहर से सावधान

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1. स्वयं को और अपने आस पास के वातावरण को स्वच्छ रखें, यहां हम आपको हर 2 मिनट में रगड़ रगड़ कर हाथ धोने और बार बार सेनिटाईज करने के लिए नहीं कहेंगे. लेकिन भोजन करने से पहले, भोजन बनाने से पहले, किसी भी बाहरी वस्तु को छूने के बाद आप जरुर हाथों को अच्छे से धोएं.

2. हालांकि लॉकडाउन के चलते अधिकतर लोग बाहर नहीं जा रहे हैं, लेकिन फिर भी किसी कारणवश यदि आप बाहर जाते हैं तो विशेष रूप से ध्यान दें. मास्क, ग्लोवस पहनकर ही बाहर जायें और घर आने के बाद इन्हें उतारकर गर्म पानी से धोने के बाद ही उपयोग में लाये. 

3. कोरोना वायरस किसी भी सतह पर कुछ घंटों से कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, इसलिए बेहतर है कि बाहर से आये सामान को अच्छे से सेनिटाईज करें तभी उसका उपयोग करें. 

4. सब्जियों और फलों का सेवन भी गर्म पानी से धोकर करें, चाहे तो पानी में नमक, बेकिंग पाउडर या सिरका डालकर उसमें कुछ समय सब्जियों व फलों को भिगोकर छोड़ दें.  

5. यदि आपको बदलते मौसम से खांसी-जुखाम आदि की शिकायत है तो निरंतर मास्क का प्रयोग करें और बुखार होने पर तुरंत चिकित्सकीय सलाह लें.  

 

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नमस्कार, मैं अमल कुमार आपके क्षेत्र का प्रतिनिधि बोल रहा हूँ. मैं क्षेत्र की आम समस्याओं के समाधान के लिए आपके साथ मिल कर कार्य करने को तत्पर हूँ, चाहे वो हो क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, समानता, प्रशासन इत्यादि से जुड़े मुद्दे या कोई सुझाव जिसे आप साझा करना चाहें. आप मेरे जन सुनवाई पोर्टल पर जा कर ऑनलाइन भेज सकते हैं. अपनी समस्या या सुझाव दर्ज़ करने के लिए क्लिक करें - जन सुनवाई.

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स्मृतिशेष पद्मश्री श्रीमती उषा किरण खानबाढ़ की सच्चाई जानने के लिए मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। एक संस्मरण और- यह 1976 की बेगूसराय की बाढ़ की ...
कोसी नदी अपडेट - कितनी बड़ी त्रासदी है यह..जिसके पास घर नहीं हैं उसका पता है सुल्तान पैलेस

कोसी नदी अपडेट - कितनी बड़ी त्रासदी है यह..जिसके पास घर नहीं हैं उसका पता है सुल्तान पैलेस

भावपूर्ण श्रद्धांजलिपद्मश्री डॉ श्रीमती उषा किरण खान से 2020 में हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश उन्हीं के शब्दों में।“जिसके पास घर नहीं हैं उसका...
कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल, हजारीबाग और पलामू जिलों पर प्रभाव -1967

कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल, हजारीबाग और पलामू जिलों पर प्रभाव -1967

बिहार में स्वतंत्र भारत में पहला घोषित अकाल 1966-67 में पड़ा था, जिसका सर्वाधिक प्रभाव गया, हजारीबाग और पलामू जिलों पर पड़ा था। इसके बारे में ...
कोसी नदी अपडेट - बिहार 1966-67 का बाढ़-सुखाड़-अकाल और विधानसभा की बहस

कोसी नदी अपडेट - बिहार 1966-67 का बाढ़-सुखाड़-अकाल और विधानसभा की बहस

1966-67 में बिहार में न सिर्फ भयंकर अकाल पड़ा था, सरकार की ओर से उसकी घोषणा भी कर दी गयी थी। इस साल आम चुनाव भी हुआ था और राज्य में पहली बार ...
कोसी नदी अपडेट - बेगूसराय के मधुरापुर गाँव का भीषण अग्निकांड-1966

कोसी नदी अपडेट - बेगूसराय के मधुरापुर गाँव का भीषण अग्निकांड-1966

1966 बिहार में आपदा के इतिहास में अकाल के नाम से मशहूर है, पर अकाल पड़ने के पहले राज्य में आगलगी की घटनायें कुछ ज्यादा ही हुई थीं। अप्रैल मही...
कोसी नदी अपडेट - निर्मली के कोसी पीड़ितों के सम्मलेन में रखे गए प्रस्ताव

कोसी नदी अपडेट - निर्मली के कोसी पीड़ितों के सम्मलेन में रखे गए प्रस्ताव

फिर वही सत्तर साल का सवाल उठता है। निर्मली के कोसी पीड़ितों के सम्मलेन (5 और 6 अप्रैल 1947) के बारे में कोसी समस्या में रुचि रखने वाले आप जै...
कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल, गया के अकाल में कृषि की दयनीय स्थिति (1967)

कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल, गया के अकाल में कृषि की दयनीय स्थिति (1967)

गया में 1967 के अकाल में कृषि की जो स्थिति बन गयी थीं, उसके बारे में विशेष जानकारी के लिये हमने श्री चन्द्रभूषण सिंह, आयु 80 वर्ष, ग्राम श्र...
कोसी नदी अपडेट - 1958 में बिहार अकाल, मुंगेर जिले में फरदा दियारे में लगी आग

कोसी नदी अपडेट - 1958 में बिहार अकाल, मुंगेर जिले में फरदा दियारे में लगी आग

बिहार: बाढ़-सूखा-अकाल 1958 आग पानी में लगी...1958 की बात है। मुंगेर जिले के जून महीने के पहले सप्ताह में फरदा दियारे में लगी आग की वजह से पू...
कोसी नदी अपडेट - वर्ष 1958 में भागलपुर जिले का अकाल, ईं. दीपक कुमार सिंह के सौजन्य से श्रीमती पार्वती देवी जी से हुई चर्चा के अंश

कोसी नदी अपडेट - वर्ष 1958 में भागलपुर जिले का अकाल, ईं. दीपक कुमार सिंह के सौजन्य से श्रीमती पार्वती देवी जी से हुई चर्चा के अंश

बिहार -बाढ़-सूखा-अकाल 1958 आलेख: ईं. दीपक कुमार सिंह के सौजन्य से 1958 में भागलपुर जिले में जबर्दस्त सूखा पड़ा था। इसके बारे में विस्तृत जान...
कोसी नदी अपडेट - 1973 में बिहार अकाल, विधानसभा में श्री भोला प्रसाद सिंह के भाषण के कुछ अंश

कोसी नदी अपडेट - 1973 में बिहार अकाल, विधानसभा में श्री भोला प्रसाद सिंह के भाषण के कुछ अंश

बिहार -बाढ़-सूखा-अकाल 1973 1973 में बिहार में अकाल घोषित तो नहीं हुआ था पर परिस्थितियाँ किसी भी तरह उससे कम नहीं थीं। इसी मसले पर श्री भोला ...
कोसी नदी अपडेट - सुखाड़ और बाढ़ से एक के बाद एक तबाही-भागलपुर के बैजानी गाँव की कहानी-1960

कोसी नदी अपडेट - सुखाड़ और बाढ़ से एक के बाद एक तबाही-भागलपुर के बैजानी गाँव की कहानी-1960

भागलपुर जिले के जगदीशपुर प्रखण्ड के बैजानी गाँव का जिक्र बाढ़ और सूखे के सन्दर्भ में अक्सर प्रमुखता से आता है। 1960 में यहाँ सूखा पड़ा हुआ था ...
कोसी नदी अपडेट - श्रद्धांजलि पं. गोविन्द झा, 1954 की दरभंगा बाढ़ पर स्व पंडित जी से हुई चर्चा के अंश

कोसी नदी अपडेट - श्रद्धांजलि पं. गोविन्द झा, 1954 की दरभंगा बाढ़ पर स्व पंडित जी से हुई चर्चा के अंश

श्रद्धांजलि पं. गोविन्द झा जी पंडित गोविंद झा अब नहीं रहे पर आज से कोई तीन साल पहले उन्होंने मुझे 1954 की दरभंगा की बाढ़ के बारे में काफी कु...
कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल, समस्तीपुर के साख मोहन गांव की तबाही-1963

कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल, समस्तीपुर के साख मोहन गांव की तबाही-1963

दरभंगा जिले के समस्तीपुर सब-डिवीज़न के दलसिंहसराय अंचल में पिछले दिनों की भयंकर वर्षा से विभूतिपुर प्रखंड क्षेत्र में धान और मकई की फसल को भा...
कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल (1963), जितिया का वह पर्व जब लखीसराय का महिसौरा गांव उजड़ गया था

कोसी नदी अपडेट - बिहार: बाढ़-सुखाड़-अकाल (1963), जितिया का वह पर्व जब लखीसराय का महिसौरा गांव उजड़ गया था

(साभार: सर्व श्री सरोज कुमार सिंह, सुभाष दुबे, प्रवीर प्रवाह)महिसौरा गाँव बिहार के लखीसराय जिले के पश्चिमी छोर पर बसा हुआ है। यह तीन तरफ से ...
कोसी नदी अपडेट - महेन्द्रपुर (बेगूसराय) गाँव का कटाव 1962-63, आर्यावर्त-पटना, अगस्त-सितंबर (1963) की खबर

कोसी नदी अपडेट - महेन्द्रपुर (बेगूसराय) गाँव का कटाव 1962-63, आर्यावर्त-पटना, अगस्त-सितंबर (1963) की खबर

यूं तो महेन्द्रपुर गाँव को गंगा ने 1962 में ही काटना शुरू कर दिया था, पर इस गांव में 1963 के अगस्त माह में अचानक कटाव तेज हो गया था और पिछले...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, मुजफ्फरपुर में 1962 में घटी एक हृदय विदारक नौका दुर्घटना

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, मुजफ्फरपुर में 1962 में घटी एक हृदय विदारक नौका दुर्घटना

बिहार -बाढ़-सुखाड़-अकालबिहार के उपर्युक्त विषय पर लिखते समय मुझे मुजफ्फरपुर में 1962 में घटी एक हृदय विदारक नौका दुर्घटना की जानकारी मिली, ज...
कोसी नदी अपडेट - पटना राइस से जुड़ी बेहद अहम जानकारी, जो बासमती को देता था टक्कर

कोसी नदी अपडेट - पटना राइस से जुड़ी बेहद अहम जानकारी, जो बासमती को देता था टक्कर

बासमती नहीं, पटना राइसकहते हैं कि बिहार के नालन्दा जिले के हिलसा इलाके से पिछली शताब्दी में पटना राइस के नाम से के चावल की किस्म लन्दन निर्य...
कोसी नदी अपडेट - नहरों और नदियों के तटबन्धों के टूटने का वृतांत 1976, बड़हिया (अन्तिम किस्त)

कोसी नदी अपडेट - नहरों और नदियों के तटबन्धों के टूटने का वृतांत 1976, बड़हिया (अन्तिम किस्त)

बड़हिया के श्री कृष्ण मोहन सिंह से हुई मेरी बातचीतउस समय यहां पक्के मकान तो बहुत कम थे। मिट्टी के गारे और पकाई गयी ईंटों के मकान जरूर थे। मि...
कोसी नदी अपडेट - बिहार में नहरों और नदियों के तटबन्धों का टूटना, 1968 में कोसी के दाहिने तटबंध के टूटने की कहानी

कोसी नदी अपडेट - बिहार में नहरों और नदियों के तटबन्धों का टूटना, 1968 में कोसी के दाहिने तटबंध के टूटने की कहानी

नहरों और नदियों के तटबन्धों का टूटनाकल मेरे एक मित्र ने मुझे खबर भेजी है कि गंडक नहर का बांध टूट गया और आधिकारिक तौर पर यह बताया गया के चूहो...
कोसी नदी अपडेट - नहरों और नदियों के तटबन्धों के टूटने का वृतांत 1976, बड़हिया

कोसी नदी अपडेट - नहरों और नदियों के तटबन्धों के टूटने का वृतांत 1976, बड़हिया

बड़हिया की सितम्बर,1976 की यादगार बाढ़1976 में सितम्बर महीने के तीसरे सप्ताह में पटना, मुंगेर (वर्तमान बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर, लखीसराय, शेख...
कोसी नदी अपडेट - मंगरौनी और कछुआ गांव के आगे दरभंगा जिले के तारडीह प्रखंड के उजान गांव की कहानी

कोसी नदी अपडेट - मंगरौनी और कछुआ गांव के आगे दरभंगा जिले के तारडीह प्रखंड के उजान गांव की कहानी

मंगरौनी और कछुआ गांव के आगे दरभंगा जिले के तारडीह प्रखंड के उजान गांव की कहानीलेखक ने 1965 की कमला-बलान के पुल के दूसरी तरफ की बाढ़ के बारे ...
कोसी नदी अपडेट - विवाह लग्न का अन्तिम दिन और बिहार की 1965 की बाढ़

कोसी नदी अपडेट - विवाह लग्न का अन्तिम दिन और बिहार की 1965 की बाढ़

विवाह लग्न का अन्तिम दिन और बिहार की 1965 की बाढ़बिहार के दरभंगा जिले के मधुबनी सब-डिविज़न में जुलाई, 1965 के पहले पखवाड़े में भीषण बाढ़ आयी थी...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री कुमार शचीन्द्र सिंह से हुई चर्चा के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री कुमार शचीन्द्र सिंह से हुई चर्चा के अंश

बिहार -बाढ़-सुखाड़ -अकालबीरपुर-सुपौल के 91 वर्षीय श्री कुमार शचीन्द्र सिंह से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंशहमारा मूल गाँव आज के समस्तीपुर जिले ...
कोसी नदी अपडेट - 1960 का बिहार का सुखाड़ और उसके दुष्प्रभाव

कोसी नदी अपडेट - 1960 का बिहार का सुखाड़ और उसके दुष्प्रभाव

एक सुखाड़ यह भी - 1960पूर्णिया के कटिहार सब-डिवीजन में मई महीने में लगभग तीन चौथाई कुएं सूख चुके थे और अब उनमें से पानी के बदले कीचड़ ही निक...
कोसी नदी अपडेट - 1957 में बिहार में पानी के लिए खूनी संघर्ष

कोसी नदी अपडेट - 1957 में बिहार में पानी के लिए खूनी संघर्ष

पानी के लिये ख़ूनी संघर्ष- बिहार 19571957 में हथिया नक्षत्र का पानी न बरसने से शाहबाद जिले में फसल को बचाने के क्रम में पानी के उपयोग को लेक...

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