"स्याही सूख नहीं पाती अख़बारों की और नयी खबरें आ जाती हैं बलात्कारों की", जी हां आजकल यही तो हो रहा है हमारे देश में. जहां स्त्रियों को देवी मानते हुए नवरात्रों में कन्या पूजन किया जाता है, भारत को भी मां माना जाता है, आज उसी भारत में बेटियों को बेआबरू करके उन्हें निर्ममता से मारा जा रहा है. जिससे हम सब देशवासी आज शर्मसार हैं. हैदराबाद की डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ हुयी निंदनीय घटना ने हम सभी को झकझोर कर रख दिया है, देश में दुःख है, रोष है, शर्मिंदगी है उस बेटी को नहीं बचा पाने की.
हैदराबाद की डॉक्टर बेटी के साथ किया गया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या दर्शाता है कि हमारी नैतिकता को घुन लग चुका है, हमारे देश के युवकों की मानसिकता का स्तर आज इतना गिर चुका है कि उन्हें यदि किसी दानव की भी उपाधि दे दी जाये तो भी गलत नहीं होगा. इस देश में महिलाएं चाहे किसी भी उम्र की हों, किसी भी राज्य की हों पर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. आज पूरे देश में इस घटना को लेकर आक्रोश पसरा है, मांग की जा रही है कि आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये. लेकिन यह सोचने वाली बात है कि जब आज से सात साल पहले निर्भया कांड को अंजाम देने वालों को अब तक कोई सजा नहीं मिली, उन्हें आम अपराधियों की तरह सभी सुविधाएं दी जा रही हैं, मुख्य आरोपी को किशोर बताकर रिहा किया जा चुका है और उसे बेहतर जीवन मुहैया कराने की तैयारी दिल्ली के सीएम साहब कर रहे हैं तो ऐसे में इस डॉक्टर बेटी को क्या इंसाफ मिल सकेगा.
वर्ष 2019 के पहले छह माह में 24000 से अधिक बलात्कार और यौन हिंसा के मामले सामने आये, लम्बे समय से यह सब जारी है. पर सरकार आंखें मूंदकर बैठी है. राजनीति, धर्म आदि से जुड़े मुद्दों पर बड़े नेताओं के बड़े बोल सुनने को मिल जाते हैं लेकिन जब किसी बेटी के साथ अन्याय हो तो क्यों सरकार गूंगी और बहरी हो जाती है. क्यों इन मुद्दों की असल जड़ बन चुकी शराब पर बेन नहीं लगाया जाता, क्यों नशे पर काबू नहीं किया जाता, पाठ्यक्रम में क्यों लड़कों के लिए विशेष रूप से नैतिक शिक्षा का प्रावधान नहीं किया जाता और सबसे अहम धडल्ले से चल रही अश्लील साइट्स को देश में प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जाता. लानत है ऐसी सरकारों पर जिनके कारण आज बेटियां डरी हुयी हैं, शिक्षा-नौकरी आदि के लिए बाहर जाने से पहले उनके मन में दिल्ली, कठुआ, उन्नाव, हैदराबाद बलात्कार घटनाओं का चित्र बन जाता है.
आज जब सरकार कहती है "बेटी बचाओ..बेटी पढाओं" तो यह किसी मजाक से कम नहीं लगता. पूछिए हैदराबाद के उस डॉक्टर बेटी के परिवार से कि क्या उन्होंने अपनी बच्ची का यह दर्दनाक हश्र देखने के लिए उसे पढ़ाया-लिखाया. मूक जानवरों का ईलाज करती वह बेटी यह नहीं जान पाई कि इंसान से बड़ा वहशी-जानवर कोई नहीं है.
मैं सभी राज्यों की सरकारों और साथ ही केंद्रीय सरकार से यह विनती करता हूं कि अपने अपने राज्य में शराब और नशे पर प्रतिबंध लगाये और बलात्कार जैसी निंदनीय घटनाओं पर चीन जैसे देशों से कुछ सीख लें, जहां जुर्म साबित होते ही सीधे मृत्युदंड का प्रावधान है न कि व्यर्थ में इन अपराधियों के पालन-पोषण का. यदि अब भी सरकार नहीं चेती तो वास्तव में बहुत देर हो जाएगी और इस तरह की घटनाएं हमारे समाज की नींव को खोखला करके इस देश को वैश्विक स्तर पर गर्त में गिरा देंगी.