या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
यानि हे माँ.. सर्वत्र विराजमान रहने वाली और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. हे माँ..आप मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें.
नव दुर्गा के नौ रूपों में से चतुर्थ दिवस पर देवी के चौथे स्वरूप कुष्मांडा का पूजन किया जाता है. माँ कुष्मांडा की आठ भुजाएँ होने के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है और आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. माता कुष्मांडा का तेज सभी दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ है और ब्रह्मांड में जितनी भी वस्तुएं स्थित है, सभी में माता कुष्मांडा का ही तेज है.
कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. यानि माता का यह दिव्य स्वरुप सृष्टि का आधार है और आदिशक्ति है. पवित्र दुर्गा सप्तशती के अनुसार माता का निवास सूर्यमंडल के भीतरी लोक में है, जहां निवास कर सकने की क्षमता एवं सामर्थ्य केवल इन्हीं में है.
आप सभी भक्तजनों पर मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरुप देवी कुष्मांडा का आशीष और प्रेम सदा सर्वदा ऐसे ही बना रहे, इन्हीं मनोकामनाओं के साथ आप सभी को चतुर्थ नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं.
आपका
अमल कुमार
प्रदेश अध्यक्ष (युवा जदयू दिल्ली प्रदेश)