दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ जिन नामों की चर्चा खबरों में चल रही है, उनके साथ एक सरप्राइज नाम भी जुड़ चुका है। निर्भया की मां आशा देवी का, जिन्होंने बाद में इन खबरों पर सख्त रूख दिखाया। आशा देवी पर चर्चा की वजह दिल्ली में कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रभारी कीर्ति आजाद का एक ट्वीट है। सवाल ये है कि कीर्ति आजाद के ट्वीट करने का क्या मतलब हो सकता है? अंत भला तो सब भला। निर्भया के दरिंदों की फांसी की नयी तारीख 1 फरवरी आयी है। पहले 22 जनवरी को फांसी होनी थी, लेकिन अपीलों के चलते इसमें रुकावट आ गयी। दिल्ली में चुनाव 8 फरवरी को है और उम्मीद है कि उससे हफ्ता भर पहले ही फांसी दे दी जाएगी। निर्भया की मां आशा देवी ने भी बोल दिया कि जब 2012 में ये घटना हुई थी तो हाथ में तिरंगा लिये, काली पट्टी बांधी और महिलाओं की सुरक्षा के लिए खूब रैलियां कीं, खूब नारे लगाये। आज यही लोग उस बच्ची की मौत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि आपने रोक दिया, कोई कह रहा है कि हमें पुलिस दे दीजिए मैं दो दिन में दिखाऊंगा। अब मैं जरूर कहना चाहूंगी कि ये अपने फायदे के लिए उनकी फांसी को रोके हैं।
अभी ये बहस चल ही रही थी कि दिल्ली कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रभारी कीर्ति आजाद ने एक ट्वीट कर नयी बहस छेड़ दी, प्रश्नवाचक चिह्न के साथ मीडिया में खबर चलने लगी कि क्या अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आशा देवी कांग्रेस की उम्मीदवार होंगी?
जब इस बाबत आशा देवी से पूछ गया तो साफ तौर पर कहा कि वो न तो राजनीति में आ रही हैं और न ही चुनाव लड़ने से कोई लेनादेना है। आशा देवी ने ये भी कहा कि इस बारे में उनकी किसी से कोई बात नहीं हुई है। फिर तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि कीर्ति आजाद ने ऐसा ट्वीट क्यों किया? कीर्ति आजाद के ट्वीट में क्या इशारा है?
कीर्ति आजाद अगर कांग्रेस के चुनाव प्रभारी नहीं होते तो उनके ट्वीट पर कोई न तो ध्यान देता और न ही उसे जरा भी गंभीरता से लेने के कोशिश करता। कीर्ति आजाद का ट्विटर पर आशा देवी का स्वागत किया जाना यूँ ही तो नहीं लगता।
2012 में जब निर्भया दरिंदों की शिकार हुई, तब उसका भाई 12वीं क्लास में था। जब राहुल गांधी को बताया गया कि निर्भया का भाई आर्मी में जाना चाहता है तो उन्होंने उसे पायलट कीटेनिंग लेने की सलाह दी। 2013 में परीक्षा के बाद उसका एडमिशन हुआ और वो ट्रेनिंग लेने लगा। निर्भया की मां ने बताया था कि राहुल गांधी ने न सिर्फ उसकी ट्रेनिंग का खर्च उठाया बल्कि वो फोन करके लगातार उसकी हौसलाअफजाई भी करते रहे।
राहुल गांधी ने निर्भया के परिवार के लिए जो किया वो बहुत ही सराहनीय काम है, लेकिन कीर्ति आजाद ने जिस चर्चा को हवा दी है उसके बारे में भला क्या कहा जाये? क्या कीर्ति आजाद निर्भया की माँ का राजनीतिक इस्तेमाल करके राहुल गांधी के अहसानों का बदला वसूलना चाहते हैं? अगर ऐसी वाकई कोई मंशा है तो बहुत ही घटिया है।